बुरहानपुर। गत दिनों मीडिया में आ रही खबरों के संदर्भ में ईस्वम सहकारी शक्कर कारखाना के पूर्व अध्यक्ष अशोक मिश्रा ने खबरों को राजनीतिक साजिश बताते हुए सही तथ्यों एवं दस्तावेजों के आधार पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि आखिर में सत्य क्या है। उन्होंने कहा कि हाल ही में एक व्यक्ति के द्वारा श्रीमती अर्चना चिटनिस पर आरोप लगाए गए। आरोप में कहा गया है कि जनहित का मामला है। श्री मिश्रा ने कहा कि यह जनहित नहीं चुनावी याचिका है, जो सिर्फ चुनाव आने पर जनसामान्य को भ्रमित करने के लिए जनहित का चोगा पहनाकर तमाशा बनाने की प्रक्रिया है।
अशोक मिश्रा ने बताया कि वर्ष 2016 में धर्मेंद्र शुक्ला द्वारा हाईकोर्ट में रिट पिटीशन क्रमांक डब्ल्यूपी-4070/2016 ईस्वम सहकारी शक्कर कारखाने के संबंध में प्रस्तुत किया था। इस याचिका को माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा दिनांक 25 जुलाई 2016 को विस्तृत आदेश पारित करते हुए निरस्त कर दिया था। इसके बाद धर्मेन्द्र शुक्ला ने उक्त आदेश के विरूद्ध उच्च न्यायालय जबलपुर में रिव्यूव पिटीशन क्रमांक आरपी-22/2017 प्रस्तुत की थी जिसे दिनांक 3 फरवरी 2017 को निरस्त कर दिया गया था। धर्मेन्द्र शुक्ला हाईकोर्ट के आदेष के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट दिल्ली गए और एसएलपी क्रमांक 5233/2018 प्रस्तुत की। उस याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने लिमिटेषन के आधार पर 23 मार्च 2018 को निरस्त कर दिया। चूंकि 2018 चुनावी वर्ष था। चुनावी वर्ष निकल जाता है और कोई भी राजनैतिक स्वार्थ नहीं सिद्ध हो पाया तो 5 वर्ष के अंतराल तक कोई भी जनहित संज्ञान में नहीं आया।
उन्होंने कहा कि अब पुनः चुनावी वर्ष 2023 आने पर जब चुनावी बिगुल बजने लगता है तब राजनैतिक विद्वेष हेतु जनहित का चोगा फिर पहन लिया जाता है। फिर वहीं आरोप, वहीं हाईकोर्ट, वहीं न्यायालय की प्रक्रिया का दुरूपयोग। परंतु इस बार कंधा बदलकर लोकेन्द्रसिंह का लिया जाता है। माननीय न्यायालय जब सवाल पूछती है तो याचिका वापस लेकर लोकायुक्त के पास षिकायत की जाती है। जिसे लोकायुक्त द्वारा भी निरस्त कर दिया जाता है। मजे की बात यह है कि जब इस कंधे से भी बंदूक नहीं चलती है तब एक नए व्यक्ति के द्वारा प्रायोजित तरीके से याचिका दायर की जाती है। इस बार याचिकाकर्ता के रूप में बालचंद शिंदे आते है।
आश्चर्य की बात यह है कि श्रीमती अर्चना चिटनिस पर आरोप तो लगाते है किन्तु उन्हें आरोपी बनाने से स्वयं ही मना कर देते हैं। स्वयं न्यायालय के समक्ष यह कहते हैं कि हमें उन्हें आरोपी नहीं बनाना है। सवाल यह है कि आरोप तो है पर आरोपी नहीं और जब आरोपी नहीं तो आरोप कैसा? बात समझने की यह है कि चुनावी वर्ष है, राजनैतिक विद्वेष है तो कैसे किसी की छवि धूमिल करें। चलो फिर से झूठ कहें परंतु वह भूल गए कि इस महान राष्ट्र की न्यायालय बहुत मजबूत है। जहां सत्य की असत्य पर सदैव जीत होती है।
अशोक मिश्रा ने बताया कि एनसीडीसी की गाईड लाईन के चलते शासन के माध्यम से टर्म लोन रूट करने की स्वीकृति न मिलने के कारण कारखाना प्रारंभ नहीं हो सका। शासन की प्रक्रिया व नियमानुसार सोसायटी का वार्षिक ऑडिट प्रतिवर्ष निरंतर किया जाता रहा है व किसी भी प्रचलित नियम का उल्लंघन सोसायटी द्वारा नहीं किया गया।