एकात्मता की रक्षा ही राष्ट्र की रक्षा है, इसे जीवित रखना होगा
मंथन व्याख्यान माला के प्रथम दिवस शहीद समरसता मिशन इंदौर के संस्थापक –श्री मोहन गिरीजी ने कहा
भारतवर्ष की समस्याओं के मूल कारण जनसंख्या विस्फोट, जनसंख्या पर नियंत्रण करना अतिआवश्यक – श्री अश्वनी उपाध्याय
बुरहानपुर(न्यूज ढाबा)–भारत जब आजाद हुआ तब अंग्रेज कहते थे कि भारत अखंड, स्वतंत्र कब तक रह पायेगा। यहाँ विभिन्न मत, मतांतर, धर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय, अमीर, गरीब के मध्य बहुत भिन्नताए मौजूद है। किन्तु भारतीय संस्कृति और विभिन्नताओं में एकात्मता के चलते आज का भारत राममय होकर विश्व का मार्गदर्शन करता हुआ दिखाई देता है। समता-स्वतंत्रता एवं न्याय प्राप्त करना है तो इसकी प्राप्ति बंधुता की प्राप्ति से संभव है, यही एकात्मता है। यही भारतीय संस्कृति की मजबूती है।
उक्त उद़़्गार पूज्यनीय डॉ. हेडगेवार स्मृति व्याख्यान माला बुरहानपुर द्वारा परमानंद गोविन्दजीवाला ऑडिटोरियम में आयोजित प्रथम व्याख्यान मंथन में राष्ट्रीय एकात्मता की चुन्नौतियॉ विषय पर प्रखर वक्त्ता श्री मोहनगिरीजी ने व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. रमेश कापडिया द्वारा की गई। मंचासीन समिति अध्यक्ष प्रशांत श्रॉफ भी मौजूद रहे।कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के छायाचित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रजवलन कर किया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा समिति अध्यक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई। अतिथि परिचय अमित कापडिया द्वारा कराया गया। इस अवसर एकल गीत की प्रस्तुती विनोद जुंजालकर द्वारा दी गई। अतिथियों को शॉल श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह भेट कर सम्मानित किया गया।
वक्त्ता श्री मोहनगिरीजी ने कहा कि बुरहानपुर आते समय मन में जिजीविशा हो एरही थी,सर्च करने पर ब्रह्मपुर का इतिहास मुगलो, आक्रांताओं, आंततायियों की अनुभूति होती है। किन्तु ब्रह्मपुर विशिष्टता लिए हुए दिखाई देता है। इस पवित्र भूमि पर गुरुनानकदेव के चरण ही नही पडे उन्होने खुली हवा में सांसे भी ली है। लगता है वैभवशाली इतिहास समेटे हुवें है। हम मंथन करते है तब हम देखते है कि हम क्या थे, क्या है और क्या हो गये। हमें इतिहास दिशा दिखाता है,मनुष्य के विकास के साथ सभ्यताओं का इतिहास भी जुडा हुवा है। विश्व में 49 सभयताए हुवा करती थी, आज 45 मिट गयी है।
आपने इकबाल के शेर रोम, युनान, मिश्र मिट गये जहां से … हस्ती है हमारी जो मिटती नही जहां से…… का उल्लेख करते हुवें कहा कि हम जानते है की मृत्यु अंतिम सत्य है जो आया है वह जायेगा। किन्तु भारतीय सनातनी सभ्यता/संस्कृति एक मात्र है जो आज विश्व का मार्गदर्शन कर रही है। आपने चित्तोडगढ की कुछ दुरी पर स्थित एक जनजाति परम्परा में महिलाओं द्वारा गाये जा रहे गर्भधारण महिला कार्यक्रम के गीत कि.. पूत जनजे तो संत या सुरविर वरना बांझ रहजाजे, का उल्लेख करते हुए कई उदाहरणों के माध्यम से भारतीय अनेकता में एकता को समझाया। उन्होने मसल्स पावर और मेन पावर वाले 5 राष्ट्रो के संयुक्त राष्ट्र संघ को अनुपयोगी बताते हुए कहा कि मानव अधिकार, मानवीय मुल्य नियम, कानुनो से लागु करना संभव नही है। इसे व्यवहार में लाया जाता है। यहां हर 25 किलोमीटर पर एक संत या मंदिर मिल जायेगें। राष्ट्र जमीन का टुकडा नही इसका निर्माण राष्ट्र, परिवार, मनुष्यता और एकात्मता से जो कि भारतीय सभ्यता/संस्कृति में ही संभव है। यहां 9 हजार साल पुरानी सिधु सभ्यता के प्रमाण मिल जायेगें। जहां सुव्यवस्थाए मिल जायेगी। समुह व्यवस्था,शिकारकर समान बटवारा होता था। आगे किसान ,कृषि व्यवस्था से आज आगे बड गये हे।
मोहन गिरी ने युरोपीयन व्यवस्था /घटनाओं का उल्लेख करते हुवें प्रकृति और पुरूष को एक दुसरे का पुरक बताते हुवें कहा कि प्रकृति मां और पुज्यनीय है उसका समाधान भी वपही देती हे। किन्तु युरोप में 400 वर्षो का रक्3त रंजीत ,संघर्ष का युग शक्ति का रहा हे। विजय अभियान चलाया गया यह वहां की समाज संरचना का आधार हे। भारत ईश्वर आधारीत है। धर्म आधारीत है ,युरोप वहा तक पहुॅचा नही है। 5 दिन काम फिर 2 दिन पबशैली का। आपने कहा डॉ बाबा साहेब ने उनकी पुस्तक में लिखा है कि अस्पृश्यता का उल्लेख 5 वी शताब्दी के बाद 7 वी शताब्दी में आया जब मुगलों ने मंदिर ,नालंदा जैसे संस्थानों को नष्ट करके एवं भारतीय शौचालय प्रथा जो खेत की थी वही बुर्कानशीनों के लिये घर में होन से धर्मग्रंथ एवं तलवार हाथ में रखकर धर्म परिवर्तन नही करने पर गर्दन कलम करने या डरकर मानमर्दन करके पाखाना साफ कराने जैसे कार्य कराये गये, यही से अस्पृश्यता सामने आयी,ऐस अनेक उदाहरण दिये।
कह गये संत रवि कि ..मन चंगा तो कठोती में गंगा.. का उल्लेख करते हुवें कहा कि 100 वर्षो से एकात्मता के भाव में संघ व समाज कार्य कर रहा हे। विश्व में 56 ईस्लामिक देश है जहां एक-एक फिरके हे ,जो एक -दुसरे से लडते / मारकाट करते है , किन्तु भारत ऐसा देश है जहां 72 मे से 69 फिरके होने के बावजुद विभिन्नता में एकात्मता का भाव है। सनातन से निकली सारी धाराये एक साथ एक भूमि पर एक साथ रहती है। यहि एकात्मता का भाव भारत में ही है। इंजिप्ट की जमीन बची किन्तु संस्कृति खत्म हो गयी हे। वही इस्लाम कहता है कि स्वीकार करो या मरो,अंग्रेज भारत की स्वतंत्रता,अखंडता ओैर रक्षा कैसे करेगें कहते थे,आज हिन्दुस्तान का रोम रोम राम मय हो गया है और विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता हुवां स्वीकार किया जा रहा हे। शक्तिशाली हो गया है। क्योकि भारत के सांस्कृतिक जीवन मुल्य का भाव कभी हममें खत्म नही हुवॉ। संचालन पुष्पेन्द्र कापडे द्वारा किया गया। समापन वंदे भारत गीत के साथ हुआ।