भगवान बालाजी मेला-अखाड़ों की लेझिम, बाना, बनेट की युद्धकला और हैरतअंगेज करतबों के साथ देर रात तक आयोजित हुई डांडिया रास गरबा प्रतियोगिताएं !
बुरहानपुर(न्यूज़ ढाबा)–ताप्ती नदी के तट पर भगवान श्री बालाजी ताप्ती उत्सव समिति द्वारा आयोजित भगवान श्री बालाजी महाराज मेले के द्वितीय दिवस जिले की विभिन्न व्यायाम शालाओं के बालक-बालिकाओं द्वारा योग अभ्यास, अखाड़ों की लेझिम, बाना, बनेट की युद्धकला और हैरतअंग्रेज करतबों के साथ डांडिया रास प्रतियोगिताएं देर रात तक चली। मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर भगवान श्री बालाजी महाराज के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया तो वहीं मेले में लगी दुकानों और झुलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का परिवार सहित आनंद उठाया। विधायक चिटनिस (दीदी) ने प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन कर अखाड़ों के उस्तादों का स्वागत-सम्मान कर अभिनंदन किया।
ताप्ती नदी के सतियारा घाट पर श्री बालाजी ताप्ती उत्सव समिति द्वारा आयोजित मेले में गरबा से आराधना की गई। गरबा प्रतियोगिता का सिलसिला रातभर चलता रहा। राजस्थानी, गुजराती, कांटियावाड़ी सहित अन्य पारंपरिक गीतों पर गरबा चला। जहां भक्ति गीतों पर कदम खूब थिरके। गरबा की आकर्षक प्रस्तुति ने सभी का मन मोह लिया। प्रतिभा दिखाने जिलेभर से गरबा मंडल के युवक-युवतियां पहुंची। वहीं जिलेभर से आए अखाड़ों की लेझिम, बाना, बनेट की युद्धकला और हैरतअंगेजे करतबों का प्रदर्शन हुआ। इसमें विभिन्न कलाकारों ने करतब दिखाए। कलाकार ने नंगे बदन किल पर लेटे युवक के शरीर से बाइक निकाली। कलाकारों ने किल पर नंगे बदन लेटकर सीने पर फर्श तोड़ी और नारियल फोड़ा। आंख की पलक, कान में केबल बांधकर पानी से भरी स्टील की बाल्टी और कलसी लटकाई। कलाकारों ने दांतों से 40 किलो ग्राम का वनज उठाकर सभी को अचंभित कर दिया। इसी प्रकार श्री राम गुरूकुल द्वारा योग अभ्यास का प्रदर्शन किया गया। जो उपस्थितजनों के लिए प्रेरणादायक रहा।
450 वर्षांे से मां ताप्ती नदी किनारे श्री बालाजी महाराज का मेला समाज और क्षेत्र की श्रद्धा के साथ-साथ विश्वास का प्रतिक है। इस मेले में आगंतुक श्रृद्धालु मात्र परंपरा और औपचारिकता वश ही नहीं आते वरन् अपनी संस्कृति और सभ्यता को यहां हम जीवंत स्वरूप लेता हुआ देख रहे है। धार्मिक आस्था के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमांे में बुरहानपुर क्षेत्र के जिंदादिल नागरिकों की रूचि का प्रमाण है। मेले हमारे मन मिलाते है, मेलों से मेल-मिलाप बढ़ता है। मेलों की परंपरा में भारतीय संस्कृति और हमारी परंपराओं को सतत् जीवंत बनाए रखा है। नदी तट पर ईश आराधना में श्रृद्धा का संगम अपने क्षेत्र में सदियों से चला आ रहा है।
ज्ञात रहे भगवान श्री बालाजी महाराज के तीन दिवसीय ताप्ती नदी तट पर आयोजित हो रहे इस मेले को विगत 16 वर्षों से श्रीमती चिटनीस द्वारा ’’भगवान श्री बालाजी’’ ताप्ती उत्सव समिति के माध्यम से कराया जाता रहा है। क्षेत्र में इस मेले का धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व रहा है इसीलिए पिछले दशक में ताप्ती नदी तट पर बालाजी मेले को भव्य स्वरूप मिला।