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Sunday, February 23, 2025

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धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला कैसे लिया गया और किसने लिया ? आईए जानते हैं इतिहास के हर अनछुए पहलू को..सांसद ज्ञानेश्वर पाटील के प्रयास से एक और ट्रेन के स्टॉपेज की मिली मंजूरी बुरहानपुर में पुणे-जबलपुर ट्रेन के ठहराव की सौगात।अयोध्या राम लला मंदिर में टूटे दान के रिकॉर्ड मंदिर की सालाना आय 700 करोड़ के पार।केन्द्रीय मंत्री भुपेन्द्र यादव से अर्चना चिटनिस ने की भेंट, बुरहानपुर में सरदार पटेल अखंड भारत वन ‘‘नगर वन‘‘ की मिली सौगात, ‘‘मां भगवती वन‘‘ और ‘‘नगर वाटिका‘‘ के लिए रखी मांग।माजिद हुसैन ने आईआईटी मेंस में 99.9992 परसेंटाइल लाकर बुरहानपुर शहर का नाम किया रोशन।

धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला कैसे लिया गया और किसने लिया ? आईए जानते हैं इतिहास के हर अनछुए पहलू को..

धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला कैसे लिया गया और किसने लिया ? आईए जानते हैं इतिहास के हर अनछुए पहलू को..

बुरहानपुर (न्यूज़ ढाबा)–छत्रपति संभाजी की हत्या के बाद औरंगजेब के सेनापति जुल्फिकार खान ने रायगढ़ पर कब्जा कर छत्रपति संभाजी की पत्नी येसु बाई और उनके पुत्र को भी कैद कर लिया जिसके बाद छत्रपति संभाजी महाराज के छोटे भाई  राजाराम जी महाराज छत्रपति के पद पर विभूषित हुए ।

छत्रपति संभाजी महाराज को औरंगजेब ने 40 दिनों तक भयंकर यातनाएं देकर मारा था । इस हाहाकारी मृत्यु ने मराठों के सीनों में आग लगा दी । उनके सारे मतभेद खत्म हो गए और सिर्फ एक ही लक्ष्य रह गया राक्षस औरंगजेब का सर्वनाश ।

संगमेश्वर के किले में जब शूरवीर छत्रपति संभाजी अपने 200 साथियों के साथ औरंगजेब के सिपहसालार मुकर्रम खान के 10 हजार मुगल सिपाहियों के साथ जंग लड़ रहे थे, उस वक्त छत्रपति संभाजी के साथ एक और बहादुर योद्धा अपनी जान की बाजी लगा रहा था जिसका नाम था… माल्होजी घोरपड़े । छत्रपति संभाजी के साथ लड़ते हुए माल्होजी घोरपड़े भी वीरगति को प्राप्त हो गए और माल्होजी घोरपड़े के पुत्र संताजी घोरपड़े ने ही अपने युद्ध अभियानों से औरंगजेब की नाक काट डाली और औरंगजेब को इतिहास में भगोड़ा भी साबित कर दिया ।

संताजी घोरपड़े के साथ एक और वीर मराठा ने दिया जिसका नाम था धना जी जाधव । औरंगजेब को यकीन था कि छत्रपति संभाजी की हत्या के बाद मराठों का मनोबल टूट जाएगा लेकिन वो उस वक्त हैरान हो गया जब तुलापुर में अचानक संताजी और धनाजी ने हमला कर दिया । औरंगजेब लाखों की सेना के साथ महाराष्ट्र के तुलापुर नाम की जगह पर अपना

डेरा डाले बैठा हुआ था । यह वही जगह थी जहां पर औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज की क्रूरता से हत्या की थी । गुरिल्ला युद्ध में पारंगत संताजी  2000 मराठा सैनिकों के साथ औरंगजेब की सेना पर खूंखार शेर की तरह टूट पड़े । संताजी ने अपने साथियों के साथ गाजर मूली की तरह मुगलों को काटना शुरू कर दिया । इस युद्ध का वर्णन करते हुए मुगलिया इतिहासकार काफी खान लिखता है कि तुलापुर की जंग के बाद संताजी की दहशत मुगलिया सैनिकों के दिलों में घर कर गई थी । संताजी के सामने पड़ने वाला मुगलिया सैनिक या तो मार दिया जाता या कैद हो जाता । आखिर में हालत ये हो गए कि संताजी का नाम सुनते ही मुगल सेना में भगदड़ मच जाती थी ।

तुलापुर में संताजी के मराठों के अचानक हमले से मुगल जोर-जोर

से चिल्लाने लगे हुजूर मराठे आ गए । एक तरफ पूरी मुगल सेना औरंगजेब की जान बचाने की कोशिश में लगी हुई थी तो दूसरी तरफ मराठे मुगलियों लाशों के ढेर लगा रहे थे । मराठे मुगल छावनी के अंदर घुस गए । इतना कत्लेआम हुआ कि औरंगजेब अपनी जान बचाकर भागा । औरंगजेब की जान बच गई लेकिन पूरे मुगल साम्राज्य की नाक कट गई और औरंगजेब पर भगोड़े का ठप्पा लग गया । मराठे औरंगजेब के कैंप के ऊपर लगे दो सोने के कलश काटकर सिंहगढ़ किले को लौट आए । अगले दिन जब सुबह हुई तो औरंगजेब मुगलों की मौत का मंजर देखकर हैरान रह गया और कहने लगा या अल्लाह किस मिट्टी के बने हैं ये मराठे यह ना थकते हैं ना झुकते हैं ना पीछे हटते हैं इन्हें मिटाते मिटाते कहीं हम ना मिट जाएं औरंगजेब इस दुख भरे हादसे से पूरी उम्र बाहर ही नहीं आ पाया था ।

इस घटना के दो दिन बाद ही संता जी ने रायगढ़ किले पर हमला बोल दिया ।

छत्रपति संभाजी की पत्नी येसुबाई को कैद करने वाले मुगल सरदार जुल्फिकार खान ने यहां पहले ही घेरा बनाया हुआ था । मराठों ने जुल्फिकार खान की सेना को काटकर रायगढ़ किले पर भी कत्लेआम मचा दिया और मुगलों का बेश कीमती खजाना घोड़े और पांच हाथी अपने साथ पकड़कर पन्हाला लेकर आए ।

इस तरह कई गोरिल्ला युद्धों ने मुगल सेना का मनोबल तोड़ कर रख दिया ।

मराठों को जब भी मौके मिलता वो मुगल सेना को चीर के रख देते । अब बारी मुकर्रम खान की थी ।  जिसने छत्रपति संभाजी महाराज को छल और धोखे से कैद किया था उस। 50 हजार रुपए ईनाम देते हुए, मुकर्रम खान को औरंगजेब ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कोकण प्रांत का सूबेदार नियुक्त किया था ।  मराठों ने यह प्रण लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए पर उस मुकर्रम खान को जिंदा नहीं छोड़ना है और दिसंबर सन 1689 को मराठों ने मुकर्रम  खान की विशाल सेना को घेरकर मुगलों को भिंडी की तरह तोड़ना शुरू कर दिया । इस घनघोर युद्ध में अब संताजी घोरपड़े ने मुकर्रम खान को दौड़ा दौड़ा कर मारा । खून से लथपथ पड़े मुकर्रम खान की ये दुर्दशा देखकर मुगल सेना उसे जंगलों में लेकर भाग गई पर मराठों के दिए घावों ने जंगल में तड़पा तड़पा कर मुकर्रम खान की जान ले ली । मुकर्रम खान को मारकर मराठों ने छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु का बदला लिया ।

संताजी घोरपड़े के साहस और शौर्य पर खुश होकर सन 1691 को छत्रपति राजाराम महाराज ने उन्हें मराठा साम्राज्य का सरसेनापति घोषित किया । सर सेनापति बनते ही संताजी ने अपना पहला निशाना मुगल सल्तनत को बनाया और अपने साथ 15 से 20 हजार का मराठा लश्कर लेकर

औरंगजेब की मुगल सल्तनत में भयंकर तबाही मचा दी । कृष्णा नदी पार कर्नाटक जैसे एक के बाद एक मुगल इलाकों में मराठा साम्राज्य

के जीत का डंका बजाया । औरंगजेब मराठों के डर से सह्याद्री के पर्वतों में इधर से उधर भागता । लगातार 27 साल मराठों ने औरंगजेब को इतना घुमाया इतना दौड़ाया कि उसका जीना मुश्किल हो गया अंत में मराठों के हाथों हो रही लगातार मुगलों की पराजय के दुख में नीच औरंगजेब ने तड़प तड़प कर महाराष्ट्र में ही दम तोड़ दिया ।

दिलीप पांडेय शोधकर्ता, पत्रकार

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