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“देश बहुसंख्यक के हिसाब से चलेगा”    जस्टिस शेखर यादव 

“देश बहुसंख्यक के हिसाब से चलेगा”                                        जस्टिस शेखर यादव 

(न्यूज़ ढाबा)–इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के बयान का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जवाब मांगा है। दरअसल विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव ने कहा था कि देश बहुसंख्यक के हिसाब से चलेगा। समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर जस्टिस यादव ने यह बयान दिया था।
जस्टिस शेखर यादव के भाषण का सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान। रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान।

वीएचपी के कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने दिया था भाषण।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम घटनाक्रम में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादास्पद बयानों से संबंधित खबरों पर मंगलवार को संज्ञान लिया और इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

वीएचपी के कार्यक्रम में दिया था भाषण
यह घटनाक्रम ऐसे समय में और अहम हो गया है जब चीफ जस्टिस संजीव खन्ना से विवादित बयान देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जा रही है। न्यायाधीश यादव ने विहिप के एक कार्यक्रम में पिछले दिनों कहा था कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) से समाज में सौहार्द बढ़ेगा। इसका उद्देश्य धर्मों और समुदायों पर आधारित असमान कानूनी प्रणालियों को समाप्त कर सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है।

शाहबानो केस का किया जिक्र
उन्होंने यह भी कहा कि भारत अपने बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा। कठमुल्ला देश के लिए घातक हैं। उनसे सावधान रहने की जरूरत है। इस पर विपक्षी दलों सहित विभिन्न धड़ों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और उन्होंने जज के बयानों पर सवाल उठाए तथा इसे घृणास्पद भाषण करार दिया।
कई दलों और वकीलों ने बयान पर जताई थी आपत्ति

कैंपेन फार ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफा‌र्म्स के संयोजक प्रशांत भूषण ने मंगलवार को सीजेआइ खन्ना को पत्र लिखकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के आचरण की आंतरिक जांच कराने का अनुरोध किया। भूषण ने कहा कि न्यायाधीश ने न्यायिक नैतिकता के साथ-साथ निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का भी उल्लंघन किया है। इस टिप्पणी ने एक तटस्थ मध्यस्थ के रूप में न्यायपालिका की भूमिका कमजोर की है तथा जनता के विश्वास को क्षीण किया है।
माकपा की नेता वृंदा करात ने आठ दिसंबर को प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि उक्त न्यायाधीश का भाषण उनकी शपथ का उल्लंघन है तथा उन्होंने मांग की कि न्यायालय में ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। करात ने इस मामले में शीर्ष अदालत से कार्रवाई करने का अनुरोध किया। इसी प्रकार, बार एसोसिएशन आफ इंडिया ने भी हाई कोर्ट जज के बयान की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया

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