किशोर दा को बोलो कम से कम एक गाना पुराने रेट में गाना होगा ,ऋषिकेश मुखर्जी ने पंचम दास से कहा।
जानिए “आने वाला पल जाने वाला है” गाने की रिकार्डिंग के अनछुए किस्से ।
बुरहानपुर (न्यूज ढाबा )
सुरमित्रों,
जाहि विधि राखे राम,ताहि विधि रहिए।
जीवन के हर मोड़ पर ,गाते बजाते रहिए।
ये दूजी पंक्ति की धृष्टता मेरी है अतः क्षमा करें।
जो सनातनी नहीं हैं, वो दूजी पंक्ति को तो आसानी से स्वीकार कर सकते हैं।
हर मुहावरे,लोकोक्ति, कहावतों में झंडे-डंडे गाड़ने-उखाड़ने की आवश्यकता नहीं है भीया(भैया)
ये सब तो भारत में आदिकाल से चले आ रहे हैं ।
आप धर्म-पंथ,जात बदल सकते हैं पर रीति-रिवाजों, संस्कृति , लोकोक्ति,मुहावरे,मिसालों को नहीं।
आज का रविवार रविवार है
बीती ताहि बिसार दें-आगे की सुध लेई।
जो बनी आवे सहज में ताहि में चित देई।
बीते वर्ष की महामारी में हर किसी ने अपना कोई न कोई खोया है।
आगे फिर उसकी दबे पांव आहट सुनाई दे रही है।
क्या पता कब कौन बिछुड़ जाए?अतः श्रेष्ठता तो इसीमें है कि मन को विषैला न करें,TV में मुर्गा बहस-नूरा कुश्ती को हृदय में स्थान न दें और जब सिकन्दर मियाँ भी कुछ न उखाड़ सके इस धरती का तो हम क्यों फोकट चिंता करें??अतः जैसा ऊपर वाला ,जिस भी अवस्था में रखे,उसमें प्रसन्नचित्त रहें।
बस मनपसंद संगीत सुनें,संगीत सीखें और सीखने की आवश्यकता नहीं हो तो संगीत समझें और उसकी भी ज़रूरत महसूस न हो तो प्रेम से सोशल मीडिया पर गायें।
आपके गाने पर कोई फतवा कम से कम भारत में तो कतई नहीं है👍
फिर बहुमत भी है आपके साथ।
जन समर्थन में पूरमपूरा ससुराल,मायका,संगी-साथी,सहपाठी-सहकर्मी,अधीनस्थ हैं जो आपके गाये गानों से वर्ष भर आपको प्रोत्साहित करने का धर्म संकट आसानी से हल करते हैं भिन्न भिन्न स्माइलीज/इमोजीस द्वारा तो काहे को देश कौन चलाएगा? में अपनी अक्ल क्यों लगाते हैं??
जब गाने में कोई बुद्धि नहीं लगाते हैं तो,इजरायल — हमास ,यूक्रेन संकट,चीन संकट,अर्थ व्यवस्था, बेरोजगारी,मंहगाई को उनके लिए छोड़ें जो हिंदी गानों को फुल्ल टाइम हमारे-आपके लिए छोड़ रहे हैं।
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा सो हम 5 साल के लिए अपना खून दे ही रहे हैं न भैया आपको।
चाहे चूसो चाहे पूसो।
कल्पना करें कि भारत में यदि गाने-बजाने पर प्रतिबंध होता तो क्या होता??
तब कोई सफ़र सुहाना नहीं होता।कोई अपनी मंज़िल कैसे पाता?कोई डगर उसके घर नहीं जाती न ही कोई तस्वीर किसीको लुभाती।
कोई आंखें शराबी नहीं होतीं न ही होंठ गुलाबी होते।
आंखें,पलकें,भौंहे,कदम,कमर,नज़र,ज़ुल्फ़ें, कलाइयाँ,वगैरह मेडिकल बुक्स में ही पढ़ते।
दिल की बातें केवल अस्पताल में होतीं।वहीं दिल टूटता और जुड़ता।
ज़ख्मी जिगर केवल ट्रांसप्लांट होता औऱ घायल कलेजे की एंजियोप्लास्टी होती।
तो प्रवचन का भावार्थ ये है भिया के जंहा संगीत नहीं वँहा प्रीत नहीं- जीने की रीत नहीं।
आप यदि वर्तमान जीवन में सुखी हैं तो ये फिल्मी गाने ही हैं। ये फिल्मी गाने प्रेशर रिलीज़ वाले वाल्व हैं।
हमारी हिंदी फिल्म्स हर प्रकार के जीवन दर्शन को नाना प्रकार के, गानों के द्वारा, अपने में समेटे हुए हैं।
ऐसे ,अनेक गीत हैं ,जिनको गाते ही आप अपनी मनोवस्था व्यक्त कर, दर्शा सकते हैं या फिर उस अवस्था को त्याग भी सकते हैं।
हमारे दिग्गज दिग्दर्शकों,निर्देशकों ने सदा इन गानों को जीवन दर्शन का माध्यम बनाया।इनका महत्व समझा और हमेशा अपनी फिल्म्स के म्यूसिक डायरेक्टर संग बैठकों में अनवरत चर्चारत रहे के कैसे कोई सिचुएशन पैदा करें जंहा कोई गाना जँचे।
अनेक बार ये सिचुएशन अपने आप ही मिलती थीं और कई बार जब नहीं मिलती थीं तो जबरन ठूंसना भी पड़ता था गाना।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अपने आप में सम्पूर्ण भारत को समेटे हुए है।
पंजाब,पूर्वांचल,उत्तरांचल,दक्षिणी,महाराष्ट्र,गुजरात,बंगाली,असमी इत्यादि हर अंचल-प्रान्त के लोगों ने बनाई ये इंडस्ट्री।
पर इन लोगों के कुछ ट्रेड मार्क थे☺️पंजाबी-सिंधी हैं तो रोमांस से गुदगुदाएंगे।हीरोइन का पीछा हीरो से अवश्य करवाएंगे।
मद्रासी हैं ,तो खूब रुलायेंगे और सास-बहू,सौतेली माँ, ननंन्द-भाभी,के झगड़ों से घर तुड़वाएँगे।जब तक रुमाल तर न हो जाये पीछा न छोड़ेंगे।
महाराष्ट्र वालों को धार्मिक, पौराणिक फिल्में बनाने में मास्टरी थी ,और स्क्रीन पर उछाले सिक्के गिन कर ही हिट/फ्लॉप तय होता था।
यूपी वालों का एकाधिकार था नवाबों की शान ,ठाकुरों की आन पर और बिहारियों का गरीब किसानों पर।
बॉम्बे आये बंगालियों ने,भी छुआछूत,कुप्रथाएँ, जमींदारी,व गलतफहमी से उतपन्न हास्य जैसे नए विषय पकड़े।
इन सबमें एक बात कॉमन थी कि ये सब ड्राइंग रूम फ़िल्म बनाते थे जिसे परिवार के सभी सदस्य सम्मिलित हो के देखें।
बंगालीयों को साफ सुथरी पारिवारिक हास्य फिल्म्स बनाने में प्रवीणता थी।
ये हास्य फिल्में पारिवारिक और बेहद कम बजट वाली होती आईं।
मज़ेदार बात ये ,के बड़े बड़े स्थापित एक्टर-एक्ट्रेस इन बंगालियों की फ़िल्म्स में कैसे भी काम करने हेतु उत्सुक-उतावले रहते आये भले उनको अपनी फीस से समझौता करने पड़े।
बंगाली अपने स्वभाव अनुसार मितव्ययिता को प्राथमिकता देते थे,जिन्हें कई कंजूसी समझते थे☺️
Larger than life वाली फिल्में पंजाबियों-सिंधियों को ही भाती थीं।
Showman Ship के सिद्धांत वाले श्री एनसी सिप्पी भी अविभाजित भारत के पंजाब-सिंध से विस्थापित हुए थे।
सिप्पीस की आनंद, मिली,खूबसूरत, चुपके चुपके जैसे जीरो बजट्स की फिल्म्स केवल ऋषिकेष मुखर्जी के कसे निर्देशन और बंगालियों के संगीत से,ही सफल हुईं।
एन सी सिप्पी जी ने, ऋषिकेश द संग एक और कम बजट फ़िल्म के प्रोजेक्ट का सोचा।
ऋषिकेश द के पास कोई बंगला कहानी (कांचा मीठा )का आइडिया था तो उसपे काम शुरू हुआ।
इस कम बजट वाली फिल्म में नवोदित कलाकर,चरित्र अभिनेता पर तो पैसे नहीं खर्च होने थे पर 2 जगह पैसे खर्च जम के होने थे।
पहली थी शूटिंग लोकेशन और दूसरी म्यूसिक।
तो इसका हल भी निकाला, स्वयं ऋषिकेश द ने और अपना बांद्रा वाला बंगला, सवा महीने के लिए प्रस्तावित किया इस फ़िल्म के लिए। FOC फ्री ऑफ कॉस्ट।
अब बात आई म्यूसिक की, तो, ऋषिकेश द की पहली पसंद तो हमेशा से बंग्ला संगीतकार ही थे जैसे बड़े दादा बर्मन,सलिल द या फिर पँचम।
राहुल देवबर्मन, उस समय ग्रेट आरडी बर्मन हो चुके थे और यदि संग किशोरकुमार का हो तो फिर 24 कैरेट की ग्यारंटी वाली जोड़ी हो जाते थे ।
एक दिन, बुलवा भेजा पँचम द को औऱ कहा कि- ए पँचम तोमको ये फ़िल्म करना है।मेरे पास पैसा नहीं है।जितना भी पैसा दूँ वो,ले लेना और मेरे लिए एक तोमको एक और काम करना है!
क्या ऋषि द?पँचम द बोले।
वो, किशोर को बोलो के कम से कम एक गाना पुराने रेट में गाना है।
ऋषि द मैं कैसे बोलूंगा??आप एक काम करो न!किशोर द को और मुझको खाने पे बुलाओ।
हमको रूही शोरषे,कोशा मांगशो,और झुरी भाजा खिलाओ फिर अपना मतलब बताओ।
यूँ किशोर द बंगालियों से, केवल कम फीस के कारण ही दूरी बनाए रखते थे कि ये,बंगाली आएंगे,बंगाली में बात करेंगे ,पैसे कम देंगे पर सिप्पी साहेब से पड़ोसन फ़िल्म का पुराना नाता रहा सो किशोर द भला कैसे टालते वो भी इतना स्वादिष्ट भोज??ऋषि द के यंहा।
तय समय,ऋषि द के यंहा सब इकट्ठा हुए।भोजन पश्चात किशोर द आलती-पालती मार के सोफे पे बैठे और पान सुपारी सेवन पश्चात,कहा-ए ऋषि द!!आप को मुझसे गाना गवाना है न??आप चिंता नहीं करो।मैं एक गाना ज़रूर गाऊंगा और आपको जो देना है दे देना पर उस गाने का बकाया मैं सिप्पी साहेब से आगे कभी वसूलूं तो आपको कोई प्रॉब्लम तो नहीं???
नो प्रॉब्लम ऋषि द बोले।
सिप्पी साहेब ने भी सोचा कि चलो अभी तो बला टली,फिर,आगे देखेंगे।
विदाई के वक़्त ऋषि द ने कहा ए पँचम no heavy music. simple राखो।OK
फ़िल्म के, नैरेटिव अनुसार हीरो स्वयं को, डबल रोल में प्रस्तुत करता है।
एक रोल सीधा सादा तो एक रोल मॉडर्न सिंगर ,का,जो बॉस की म्यूसिक लवर बेटी को म्यूसिक सिखाएगा।
इस सिचुएशन में ,जब पँचम द को कहा,के मेरा म्यूसिक टीचर हीरोइन को गाना सिखाएगा तो तोमको कोई सेमी क्लासिकल गाना बनाना है ।
सुनते ही, तो पँचम द ने टोका। और कहा कि ऋषि द, आपका हीरो तो मॉडर्न सिंगर है? तो फिर सेमी क्लासिकल क्यों गायेगा??उसे तो कोई लाइट सॉन्ग गाना चाहिए न?
औऱ यदि आप उसे सेमी क्लासिकल गवाते हैं तो फिर उसका ड्रेस अप भी कुर्ते पैजामे वाला जैसा ही रखें औऱ दूसरे करेक्टर का मॉडर्न रखें जो,के ऑफिस मैनेजर जैसा लगे।
नहीं नहीं पँचम, वो तो होमारा पूरा करेक्ट्राईजेशन ही बोदल जाएगा।
सीधा वाला ऑफिस एकाउंटेंट औऱ मॉडर्न वाला म्यूसिक टीचर ही रहेगा बाबा।
तो ऋषि द यदि एक करेक्टर मॉडर्न म्यूसिक टीचर है तो फिर तो किशोर द ,से, ये गाना गवाना पड़ेगा पँचम द ने कहा।
अरे,तो फिर होमारा टाइटल सॉन्ग??कौन गायेगा।।बाबा?
हूँ देखते हैं उसको ।फिर वो मैं और शपन भी गा सकते हैं टाइटल सॉन्ग।पँचम द ने फरमाया।
OK फिर किशोर को ही गवाओ।ऋषि द बोले।
नित्य के भांति, सुबह सुबह स्व भानु दासगुप्ता जी, मैरीलैंड अपार्टमेंट,सांताक्रुज आये और ,अपनी पॉकेट से हॉर्मोनिका निकाल कर ऐसे ही अनायास शोले की थीम प्ले करने लगे।
🎵ग*म प स प🎵
बस इतना ही बजाया था के पँचम द, अंदर से चिल्लाए।
ए भानु द ठाको।ये ट्यून और रिपीट बजाओ ।बन गया बन गया।
क्या बन गया??सब सोचने लगे!!!
बाहर आते ही बोले कि इसमें,पँचम के बदले ऋषभ डालो वो भी तार सप्तक वाला।और फिर बजाओ ज़रा।
🎵ग*म प स रे🎵
दीपेन द ,तुम,फोन लगाओ सफेद कौएं (गुलज़ार )को के गाना बन गया।
गुलज़ार साहब,पँचम द को लाल कौंआँ तो पँचम द गुलज़ार साहब को सफेद कौंआँ प्यार से सम्बोधित करते थे।
गुलज़ार साहब आये ।धुन सुनी और बोल चढ़ने शुरू हुए।
सुबह-सुबह की शिफ्ट में रिकॉर्डिंग थी फ़िल्म सेंटर स्टूडियो में।
श्री मारुति राव जी, जो के, चीफ रिदम अरेंजर थे,ने 4/4 time Signature में एक रिदम पैटर्न, निर्देशित किया जिसे अमृत राव,देवीचंद जी व मनोहर ने 2कोंगा,2तुम्बा पर लिया।
सुंदरता इस रिदम पैटर्न की ये,के,इस रिदम पर जो टीप सुनाई दे रही है न!! उसे तबले की दाएं चाटी पर,स्वयं मारुति काका ने बजाया।
6 स्ट्रिंगस रिदम गिटार पर भानु द,व अन्य,12 स्ट्रिंगस गिटार पर भूपी द और बाकी पूरा स्ट्रिंगस सेक्शन सदैव के भांति मौजूद रहा।
अरेंजर द्वय, बासु द-मनहारी सिंह जी ने जॉर्जि फर्नांडिस सर ,जो के मशहूर🎺ट्रम्पेटियर हैं,से एक Trumpet Solo Sonata रखवाया और इसी Sonata के against श्री किशोरकुमार का Vocal Cantata रखने से ये प्रील्यूड यादगार बन पड़ा।
Solo Sonata🎺
em🎼g c c e gb g gb e b a g
Vocal Cantata
🧑 किशोरकुमार take
🎶हूँ हूँ🎵 आ हा हा🎵 ए हे हे
🎵 हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ
🎼 em🎶आने वाला पल🎼c
👤किशोर द के,🎵 पल 🎵का थ्रो🗣️ 🎵षडज से तार सप्तक के ऋषभ तक🎵 जो रहा न!!!वो इतना जबरदस्त था के उस, पल स्टूडियो, में, सब के कान ,सहसा,☺️ठहर-ठिठक से गए और आज तक वो 🎶पल 🎶 ही गूंज रहा है सबके कानों में।
ये वही स्वर रचना रही, जिसे,मूलतः शोले की हॉर्मोनिका थीम से लिया गया।
🎼d🎶जाने वाला है ए ए 🎼em
🎼g🎶हो सके तो इसमें🎼am
🎼am🎶ज़िन्दगी बिता दो🎼g
🎶पल ये जो जाने वाला है
c🎶हो🎼a ओ🎼em
M 1 में इलेक्ट्रिक ट्रांसिकॉर्ड पर,करसि लार्ड सर,टोनी वाज़, सरदार चन्नी जी ने tempo खींचा,जिसे स्ट्रिंगस सेक्शन ने आगे लिया।इंटरल्यूड्स का cut off भूपी द ने अपने 12 स्ट्रिंगस🎸पे किया।
ऋषि द ने M 2 में dream sequence का सोचा सो इसका tempo 2/4 कर के 12 स्ट्रिंगस पर एक फ्रेस लिया स्व भूपी जी ने।
इसी गिटार फ्रेस पे, डायरेक्टर ऋषिकेश जी ने हीरोइन बिंदिया गोस्वामी को अपने भविष्य के स्वप्न पुष्पों को चुनते दिखाना था और फिर तत्काल tempo को 2/4 से 4/4 का सिग्नल मिलते ही जोर्जि सर का ट्रम्पेट चिंघाड़ उठा जिस पर बिंदिया के सपनों के राजकुमार अमोल पालेकर के slow motion वाला शॉट है।
🎼em🎶एक बार वक़्त से🎼g 🎶लम्हा गिरा कंही🎶🎼em
🎼d🎶वँहा दास्ताँ मिली🎼c
🎼am🎶लम्हा कंही नहीं🎼d
🎼g🎶थोड़ा सा हँसा के🎼am
🎼am🎶थोड़ा सा रुला क🎼g
🎼em🎶पल ये भी जाने वाला है
🎼b🎶हो हो🎼em
em🎶आने वाला पल-लल्लल🎼c
🎼d🎶जाने वाला है🎼em
End Coda music में strings और ट्रम्पेट की जुगलबंदी से मुखड़ा फिर से ज़िंदा हो गया।
यूँ श्री किशोरकुमार की अमोल आवाज़ पा कर, अमोल भी धन्य हुए।
पँचम द,ने सेमी क्लासिकल सॉन्ग के बदले सिचुएशन अनुसार एक वेस्टर्न सॉन्ग बना कर मॉडर्न म्यूसिक टीचर से न्याय किया।
तो सुरमित्रों ,हो सके तो इसमें,ज़िन्दगी बिता दो,पल ये जो जाने वाला है।
अब तीन चीजें रह गई,बताना।
पहला फ़िल्म का नाम??गोलमाल है भाई सब गोलमाल है☺️😊
दूसरा ,के इस गाने के बैलेंस पैसे ,श्री किशोरकुमार ने,कैसे वसूले?
इसका स्वर्णिम अवसर ,उनके हाथ 1979 के,कोई 2 साल बाद, आया, जब,सिप्पीज़ ने ,जब अपना अगला प्रोजेक्ट लॉन्च किया जिसका नाम था।
📽️सत्ते पे सत्ता🎞️
आपका सुरमित्र
विनीत श्रीवास्तव🎸